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Showing posts from April, 2019

Inspiring Quotes

Build your confidence, give up your fear of being wrong Failure is not the final destination, this is part of the success. Focus on positivity   Giving all you can Focussed vision I can do it You can do everything Whatever it takes Communication helpful sometimes Never ever quit Positive attitude Get started Make a new start Get inspired

जैंसा कर्म करोगे वैसा फल भी मिलेगा। HINDI STORY

Law of Karma यह कहानी  United State of America से एक सच्ची घटना पर आधारित है इसे रेपलीसिव बिलीव तोर्नोल्ड में भी दर्ज किया गया है। यह कहानी 1893 की है हेनरी नाम का एक लड़का था  वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ रहता था। लेकिन कुछ समय बाद वह अपनी गर्लफ्रेंड को धोखा दे देता है। उसकी गर्लफ्रेंड जब अपने घर जाती है तो अपने भाई को सारी कहानी बताती है । उसका भाई गुस्से में हो आ जाता है और वह रिवाल्वर निकाल कर हेनरी के घर पहुंच जाता है और वह हेनरी को सूट करता है लेकिन गलती से वह गोली हेनरी के कान के पास से निकल कर कहां बाहर बगीचे में पेड़ होता है, उसमें धंस जाती है और हेनरी नीचे गिर जाता है। उस लड़की का भाई सोचता कि हेनरी मर गया तो वह रिवाल्वर से खुद को सूट कर देता है और उसकी मौत हो जाती है। जब उसकी बहन को या पता चलता है तो वह भी खुद को सूट कर के मर जाती है ।  इस घटना के 20 साल बाद हेनरी अपने घर का पुनर्निर्माण  कर रहा होता है,  तो उसे लकड़ी की आवश्यकता होती है तभी उसकी नजर बगीचे में खड़े पेड़ पर जाती है यह वही पेड़ होता है जिस पर 20 साल पहले गोली लगी होती है। तो उस पेड़ से वह लकड़ी निकालने क

तुम्हारा जेबकतरा hindi motivational story |

hindi motivational story  बस से उतर कर जेब में हाथ डाला में चौंक पड़ा। जेब कट चुकी थी । जेब में था भी क्या 90 रुपए और एक खत जो मेंने माँ को लिखा था की मेरी नॉकरी छूट चुकी है पैसे नही भेज पाऊंगा । 3 दिनों तक वो खत मेरी जेब मे पढ़ा था पोस्ट करने को मन ही नही कर रहा था । 90 रुपये जा चुके थे यूँ तो 90 रुपये कोई बड़ी रकम नही थी पर जिसकी नॉकरी छुट चुकी हो उसके लिए 90 रुपये  900 रुपये से कम नही होते । कुछ दिन गुजरे मां का खत मिला पढ़ने से पहले में सहम गया था कि पैसे देने की बात लिखी होगी ।लेकिन खत पढ़ कर में आश्चर्यचकित रह गया मां ने लिखा था कि तेरा 1000 का मनीऑर्डर मिल गया था तू कितना अच्छा है समय पर पैसे जो भेज देता है । मैं इसी सोच में डूब गया कि आखिर मां को पैसे किसने भेजे । कुछ दिन बाद एक और खत  मिला चंद लाईने थी आड़ी तिरछी बड़ी मुश्किल से पढ़ पाया लिखा था कि भाई 90 रुपये तुम्हारे ओर 910 अपनी तरफ से मिला कर मेने तुम्हारी माँ को मनीऑर्डर भेज दिया है फिकर मत करना मां तो सबकी एक जैसी होती है ना वह क्यों भूकी रहे । तुम्हारा जेबकतरा धन्यवाद । कहानी अच्छी लगी तो share करें।

हेलेन केलन औऱ लक्ष्य

एक बार हेलन केलन से किसी ने पूछा, " जीवन में अंधा होना होने से भी बड़ा अभिशाप कोई हो सकता है क्या?" हां, हेलेन केलर ने कहा, दृष्टि ना होना, लक्ष्य का ना होना जीवन में अंधे होने से बड़ा अभिशाप है ।नेत्रहीनता इतनी बड़ी समस्या नहीं है , जितनी लक्ष्य या दृष्टि के ना होने से समस्याएं जन्मती है । हेलेन केलन औऱ लक्ष्य हेलन केलन अमेरिकन अंधी महिला थी, जिन्होंने दो बार हवाई जहाज उड़ाया - जो विकलांग लोगों की मदद एवं विश्व शांति के लिए विश्व भ्रमण करती रहती थी । उन्होंने अपने जीवन में 9 वर्ष की उम्र में 1.5 वर्ष के प्रयास के बाद पहला शब्द बोलना सीखा।

Daily hindi motivational quotes

सुभाष चंद्र बोस का लक्ष्य

सुभाष चंद्र बोस महत्वाकांक्षी थे । जब वे अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों से रुबरू हुए तो उन्होंने तय किया कि अपनी मातृभूमि को हर कीमत पर मुक्त करवाएंगे।  "तुम काले भारतीय, चुप रहो" एक अंग्रेज विद्यार्थी अपने भारतीय सहपाठी पर चिल्लाया। यह दृश्य था, कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज का, अंग्रेजों के शासनकाल में । उस अंग्रेजी विद्यार्थी ने भारतीय विद्यार्थी को पकड़ा और एक चांटा मारा। किसी ने इसका विरोध नहीं किया। परंतु एक भारतीय सहपाठी को यह बदतमीजी सहन नहीं हुई ।उसने इसका विरोध करने का निश्चय किया ।उसी समय तक प्रोफेसर ने कक्षा में प्रवेश किया , पूरी कक्षा में शांति छा गई । पर उस समय साहसी बालक का मन अशांत था। उसने समस्या का विश्लेषण किया और भारत को अंग्रेजों के चंगुल से हर कीमत पर मुक्त कराने का संकल्प किया। एक दिन उसने नारा दिया, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा ।" आपको पता है - यह बालक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे। Subhash Chandra Bose  सुभाष चंद्र बोस का उद्देश्य स्पष्ट था इसलिए उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस (आज की आईएएस) का परित्याग क

Daily Motivation

"Ladder to future is not ready made, but you have to build it using your tools." Think positive sometimes it Makes impossible into possible

दिल्ली की झोपड़ पट्टियों से जन्मा एक अभिनेता

दिल्ली की एक झोपड़ पट्टी में जिसने होश संभाला हो, आस पड़ोस के कुछ समृद्ध लोगों के घरों में TV देखने के लिए जिसे दुत्कारा गया हो, वही एक दिन फ़िल्मी दुनियाँ में इस क़दर छा गया की लोग विश्वास नहीं कर पाए। यही वो शक्श हैं जिन्हें हम फिल्म "तारे ज़मीन पर" के नंदकिशोर अवस्थी के किरदार में देख चुके हैं और जिन्हें हम विपिन शर्मा के नाम से जानते हैं। inspiring story vipin sharma  विपिन ने अपना शुरूआती जीवन बड़ी ही मुश्किलों में बिताया। अपने घर की जिम्मेदारी निभाने के लिए दिल्ली के पंजाबी थिएटर में टिकटें बेचीं। थिएटर कलाकारों और सिनेअभिनेताओं के अभिनय को देखकर एक छोटी सी इच्छा ने इन्हें झकझोरा। यही से थिएटर के प्रति इनका झुकाव शुरू हुआ। और एक दिन NSD से अपनी उम्मीदों को उड़ान दी। और तत्कालीन दिग्गज निर्देशकों जैसे केतन मेहता, श्याम बेनेगल आदि के साथ अपनी कला को निखारा। लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उभरीं जिसके कारण इन्हें एक लम्बे अंतराल के लिए विदेश रहना पड़ा। अपने काम के साथ-साथ इन्होने थिएटर और अभिनय के शौक़ को बनाये रखा। कई वर्कशॉप्स भी किये। कनाडा में रहते हुए अभ

डी-मार्ट - जिसने देश में रिटेल बिज़नेस की लहर लाई

D-Mart की कहानी अपने आपमें एक प्रेरणा है। इसके संस्थापक राधाकृष्ण दमानी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने बिना किसी बड़ी पूँजी के करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर दिया और ये साबित कर दिया की कैसे शून्य से उठकर जीवन की बुलंदियों को छूआ जा सकता है। राधाकृष्ण दमानी ने अपना जीवन बॉल बेअरिंग के ट्रेडिंग से शुरुआत की। इनके भाई स्टॉक मार्केट का बिज़नेस करते थे। पिता की अचानक मृत्यु ने इनके परिवार को अव्यवस्थित कर दिया था। इन्हें अपने बॉल बेअरिंग के बिज़नेस को बंद करना पड़ा। इसके बाद ये अपने भाई के साथ स्टॉक मार्केट के बिज़नेस में आगे बढ़े और काफी कुछ अच्छा भी करने लगे थे। बहुत पैसे भी कमाए। एक समय तो ये दलाल स्ट्रीट के सबसे बड़े ब्रोकर भी बने। लेकिंग जल्द ही इस बिज़नेस के भेड़िया-चाल से ये ऊब चुके और अपना ही कुछ काम करने का विचार किया। एक छोटी सी पूँजी लगाकर इन्होने डी-मार्ट की नीव रखी। अपनी कुछ विशेषताओं के कारण डी-मार्ट लगातार उन्नति किये जा रहा है। दमानी जी ने हमेशा मध्यम वर्ग के ग्राहकों का ध्यान रखते हुए उन्हें अधिकतम डिस्कॉउंटस दिया। इनके 90% से अधिक स्टोर्स अपने ही हैं, इसलिए किराये

पेन बेचने से शुरुआत कर आज करोड़ों का व्यापार खड़ा किया

हम अक्सर किसी अमीर इंसान की उपलब्धियों को देखकर उसकी किस्मत की ही दाद देते हैं लेकिन हमारे ज़हन में ये कभी ख्याल नहीं आता की उसकी इस उपलब्धि के पीछे उसे कितनी मुश्किलें आयी होंगी और उसने किस क़दर मेहनत की होगी। हर सफलता के पीछे एक ज़िद, आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय का हाथ होता है। अपनी छोटी सी उम्र में अपने भाई के साथ साइकिल पर कभी जिसने पेन बेचकर अपनी शुरुआत की, आज वही करोड़ों की कंपनी खड़ी कर चुका है। पावर बैकउप की दुनियाँ में छाने वाले कुंवर सचदेव ने बिना किसी तकनीकी जानकारी के आज इतना बड़ा साम्राज्य बना लिया है। इन्होने दिल्ली यूनिवर्सिटी से मैथमेटिकल स्टेटिस्टिक्स और लॉ की डिग्री हासिल की। कुछ दिन नौकरियां भी कीं लेकिन जल्द ही अपना काम करने का विचार बनाते हुए केबल इंस्टालेशन करना शुरू किया। एक खोजकर्ता के रूप में उन्होंने जल्द ही भारत के पॉवर बैकअप इंडस्ट्री के विकास और उनकी जरूरतों को भाँप लिया और 1998 में ही उन्होंने Su-kam Power System की स्थापना की। कुछ ही सालो में कड़ी मशक्कत और महेनत करते हुए उन्होंने Su-kam को इंडियन मल्टीनेशनल कंपनी बना दिया और इसे भारत की

कभी सड़कों पर जिसने बलून बेचे, उसी ने खड़ी की भारत की सबसे बड़ी टायर कंपनी

हमारा देश अन्य विकासशील देशों की तुलना में स्वतंत्रता के पहले और बाद भी एक मामले में अत्यंत भाग्यशाली रहा की यहाँ के स्टील, सीमेंट, भारी इंजीनियरिंग, परिवहन और ऑटोमोबाइल टायर जैसे उद्योगों में विदेशी कंपनियों का वर्चस्व नहीं रहा, क्योंकि कुछ भारतीय उद्योगपति ऐसे थे जिन्होंने इस क्षेत्र में पहल करने का बीड़ा उठाया था। ऐसे ही एक अग्रणी थे एम. एम. मैमेन मेपिल्लई। जिन्होंने अपनी कंपनी MRF के जरिये भारतीय रबर उद्योग की स्थापना की जो आजतक अपनी स्थिति मज़बूत किये हुए है। मैमेन केरल के सीरियन ईसाई परिवार में जन्मे थे। इनके पिता एक निजी बैंक चलाते थे और साथ ही समाचार पत्र का सञ्चालन भी करते थे। तत्कालीन त्रावणकोर की रियासत ने इनके कुछ विवादस्पद लेखों के कारण इन्हें कैद कर जेल भेज दिया था। जिसके कारण मैमेन जी का परिवार बड़ी मुश्किलों में पड़ गया था। उस समय मैमेन कॉलेज में थे। घर की जिम्मेदारियों को समझते हुए मैमेन अपने भाइयों के साथ छोटा-मोटा काम करने लगे। इन्होने अपने घर के अहाते में बलून बनाने की एक छोटी सी यूनिट डाली। यहाँ तक की खुद ही सड़कों पर जाकर उसकी बिक्री भी की। इस काम मे

क्रिकेट के जूनून ने गुरूद्वारे में शरण लेने के लिए मजबूर किया

हम सभी अपने जीवन में कुछ नया, अच्छा और आकर्षक करने का सपना देखते हैं और उसे पूरा करने के लिए अपनी जी-जान से उसमे डूब भी जाते हैं। पर हमारे बीच वही सफल होते हैं जो पूरे विश्वास और दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ते हैं। इसी जज़्बे की एक बहुत बड़ी मिसाल है क्रिकेट जगत के आजके उभरते बल्लेबाज और विकेट कीपर ऋषभ पंत। ऋषभ IPL के माध्यम से उभरे और अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से इन्होने कुछ ही दिनों में हर किसी का दिल जीत लिया। लेकिन ऋषभ का यह सफर इतना आसान भी नहीं रहा। रुड़की के एक बिलकुल ही साधारण से परिवार में जन्मे ऋषभ ने वो दिन भी देखे हैं जब उन्हें दिनभर के भोजन के लिए गुरूद्वारे की शरण लेनी पड़ती थी। फिरभी क्रिकेट के अपने सपने को पूरा करने में इन्होने अपनी जीतोड़ मेहनत लगा दी। भारतीय टीम में अपने नटखट अंदाज़ के लिए मशहूर ऋषभ अपने बचपन में बड़े ही गंभीर और शांत स्वभाव के थे। लेकिन क्रिकेट के प्रति गहरी रूचि के लिए वे अपने मातापिता से काफी डांट फटकार सुनते थे। पढ़ाई में वैसे भी ऋषभ का मन कुछ खास नहीं लगता था। क्रिकेट के प्रति अपने इस पागलपन से आखिर इन्होने अपने परिवार वालों को मना ही लि