सुभाष चंद्र बोस महत्वाकांक्षी थे । जब वे अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों से रुबरू हुए तो उन्होंने तय किया कि अपनी मातृभूमि को हर कीमत पर मुक्त करवाएंगे।
"तुम काले भारतीय, चुप रहो" एक अंग्रेज विद्यार्थी अपने भारतीय सहपाठी पर चिल्लाया। यह दृश्य था, कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज का, अंग्रेजों के शासनकाल में । उस अंग्रेजी विद्यार्थी ने भारतीय विद्यार्थी को पकड़ा और एक चांटा मारा। किसी ने इसका विरोध नहीं किया। परंतु एक भारतीय सहपाठी को यह बदतमीजी सहन नहीं हुई ।उसने इसका विरोध करने का निश्चय किया ।उसी समय तक प्रोफेसर ने कक्षा में प्रवेश किया , पूरी कक्षा में शांति छा गई । पर उस समय साहसी बालक का मन अशांत था। उसने समस्या का विश्लेषण किया और भारत को अंग्रेजों के चंगुल से हर कीमत पर मुक्त कराने का संकल्प किया। एक दिन उसने नारा दिया, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा ।" आपको पता है - यह बालक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे।Subhash Chandra Bose |
सुभाष चंद्र बोस का उद्देश्य स्पष्ट था इसलिए उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस (आज की आईएएस) का परित्याग किया। आजादी के आंदोलन में प्रारंभ से कांग्रेस में महात्मा गांधी के साथ थे । एक बार भी गांधीजी के प्रबल विरोध के बावजूद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। बाद में हुए अंग्रेजों द्वारा जेल में भी डाले गए । किंतु वे जेल से भाग निकले और उन्होंने सिंगापुर जा कर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाला । द्वितीय विश्वयुद्ध मैं यही फौज अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ी ।
यह सब संभव हो पाया क्योंकि
1. उनका लक्ष्य निर्धारित था।
2. उन्होंने अपने संकल्प के अनुसार ही उद्देश्य प्राप्त की योजना बनाई और लक्ष्य को प्राप्त किया।
3. इसका मूल्य चुकाने को सदैव तत्पर रहें ।उन्होंने अपना सारा जीवन, सारे सुख उसी के लिए विसर्जित कर दिए । इसलिए हम उन्हें नेता जी कहते हैं ।
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