दिल्ली की एक झोपड़ पट्टी में जिसने होश संभाला हो, आस पड़ोस के कुछ समृद्ध लोगों के घरों में TV देखने के लिए जिसे दुत्कारा गया हो, वही एक दिन फ़िल्मी दुनियाँ में इस क़दर छा गया की लोग विश्वास नहीं कर पाए। यही वो शक्श हैं जिन्हें हम फिल्म "तारे ज़मीन पर" के नंदकिशोर अवस्थी के किरदार में देख चुके हैं और जिन्हें हम विपिन शर्मा के नाम से जानते हैं।
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inspiring story vipin sharma |
विपिन ने अपना शुरूआती जीवन बड़ी ही मुश्किलों में बिताया। अपने घर की जिम्मेदारी निभाने के लिए दिल्ली के पंजाबी थिएटर में टिकटें बेचीं। थिएटर कलाकारों और सिनेअभिनेताओं के अभिनय को देखकर एक छोटी सी इच्छा ने इन्हें झकझोरा। यही से थिएटर के प्रति इनका झुकाव शुरू हुआ। और एक दिन NSD से अपनी उम्मीदों को उड़ान दी। और तत्कालीन दिग्गज निर्देशकों जैसे केतन मेहता, श्याम बेनेगल आदि के साथ अपनी कला को निखारा। लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उभरीं जिसके कारण इन्हें एक लम्बे अंतराल के लिए विदेश रहना पड़ा। अपने काम के साथ-साथ इन्होने थिएटर और अभिनय के शौक़ को बनाये रखा। कई वर्कशॉप्स भी किये। कनाडा में रहते हुए अभिनय के गुरों को सीखते रहे और एडिटिंग में भी महारत हासिल की।
इसी बीच अपने कुछ मित्रों से प्रोत्साहित होकर एक बार फिर एक्टिंग की तरह गंभीरता से इन्होने विचार किया और अपने सपनों को साकार करने ले लिए भारत लौटे। इसे सौभाग्य ही कहा जायेगा जब "तारे ज़मीन पर" से इन्हें एक ब्रेक मिला। इस फिल्म ने मानों एक नया उभरता चरित्र अभिनेता खोज निकाला। इसके बाद तो "पान सिंह तोमर, गैंग्स ऑफ़ वाशेपुर, ये साली ज़िन्दगी, साहेब, बीबी और गैंस्टर, इंकार" आदि फिल्मों में अपने अभूतपूर्व अभिनय से विपिन ने तहलका सा मचा दिया। एक्टिंग के प्रति अपनी गंभीरता के कारण ही इतने बड़े अंतराल के बाद भी विपिन को इतनी सफलता मिली। फिल्मों को हमेशा इन्होने समाज के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत समझा अतः विपिन हमेशा बेहतरीन कहानियों को ही चुनना चाहते हैं।
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