अपनी शास्त्रीय पद्धिति के कारण भारतीय संगीत का दबदबा विश्व विख्यात है। साथ ही हमारे संगीतकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है। इन्हीं संगीतकारों में AR Rahman एक ऐसी विभूति हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं में पश्चिमी संगीत के मिश्रण से एक अनोखी शैली अपनाकर संगीत की दुनियां में तहलका मचा दिया है और आज वे भारत के पहले ऐसे संगीतकार हैं जिन्हें Academy Award और Grammy Award से भी सम्मानित किया जा चुका है।
AR Rahman के पिता तमिल एवं मलयालम फिल्मों में संगीत देते थे इसलिए इन्हें बचपन से ही संगीत का माहौल मिला। लेकिन जल्दी ही इनके सर से पिता का साया उठ गया। इसके बाद तो इनके परिवार पर मानों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। इनके पिता के वाद्य यंत्रों को किराये पर देकर इनकी माँ ने किसी तरह अपने परिवार की नैया को आगे बढ़ाया।
रहमान भी अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़, छोटे-मोटे Musical Band में काम करने लगे। इनकी प्रतिभा को देखते हुए मशहूर संगीतकार इलयाराजा ने इन्हें अपने साथ जोड़ लिया और मात्र 11 साल की उम्र में रहमान ने मलयालम फिल्मों से अपने संगीत का सफर शुरू किया।
तभी एक और बड़ी मुसीबत इनपर आन पड़ी। साल 1988 में इनकी छोटी बहन इतनी बीमार पड़ी की बचने की कोई उम्मीद न थी। पिता की मौत के बाद जो परिवार बड़ी मुश्किलों से उबर पाया था, एक बार फिर टूटने लगा। तभी इनकी माँ की मुलाक़ात एक सूफी संत से हुयी जिनकी दुआओं से एक चमत्कारी रूप से इनकी बहन ठीक हो गयी। यहीं से इनके परिवार ने सूफियाना माहौल को अपना लिया और तभी से इनका नाम दिलीप से बदल कर अल्लाह रक्खा रहमान हो गया।
रहमान फिर से अपनी संगीत की साधना में आगे बढ़ने लगे। इन्होंने इंग्लैंड के मशहूर ट्रिनिटी कॉलेज से Western Classical Music में अपनी संगीत की शिक्षा पूरी की। इसके बाद तो रहमान की संगीत की यात्रा एक इतिहास बन गयी। तमिल फिल्म रोज़ा से शुरू हुयी रहमान की यात्रा ने फिर कभी मुड़कर नहीं देखा।
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