नारायणमूर्ती के जीवन की एक सच्ची घटना मेरी पत्नी , “ आप कितनी देर अख़बार पढ़ते रहोगे , इधर आओ और अपनी प्यारी बेटी को नाश्ता करवाओ “ । मैंने अख़बार एक तरफ़ रखा और तेज़ी से सिंधु की तरफ़ गया । सिंधु घबराई हुई लग रही थी , उसकी आँखों में आँसू थे और उसकी माँ उसके सामने एक प्याला दही वाले चावल , curd rice लिए खड़ी थी । सिंधु एक अच्छी समझदार शांत स्वभाव की लड़की है । मेने दही वाले चावलों का प्याला अपने हाथ में लिया , “ बेटा तुम्हें पसंद नहीं हैं फिर भी कुछ चावल खा लो , अपने पापा की ख़ुशी के लिए “। सिंधु कुछ शान्त हुई , अपने छोटे छोटे गुलाबी हाथों की पिछली साइड से आँसू पूँछें, “ ठीक हे, मैं ये दही वाले चावल खा लूँगी , थोड़े से नहीं पूरा प्याला खा लूँगी “ । सिंधु थोड़ा झिझकते हुए आगे बोली , “ पापा अगर मैं ये पूरा प्याला दही वाले चावल खा लूँगी तो क्या मैं जो माँगूँगी वह आप मुझे देंगें “? मै बिना सोचे समझे , “ हाँ बेटा , अगर तुम पूरा प्याला दही वाले चावल खा लेंगी तो तुम जो माँगोगी मै तुम्हें दूँगा “। सिंधु ने अपना छोटा सा गुलाबी सीधा हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाया “ पापा , वायदा “ । मैंने उसक...
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